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बच्चों को भी लग सकेगी नाक से दी जाने वाली कोरोना वैक्सीन,

भारत में जल्द ही नाक से दी जाने वाली यानी इंट्रानेजल वैक्सीन आ सकती है। कोवैक्सिन बनाने वाली हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ही इस वैक्सीन को भी बना रही है। लैबोरेटरी में जानवरों पर यह सफल रही है। इंसानों के लिए यह वैक्सीन सेफ है या नहीं, इसकी जांच के लिए भारत के ड्रग रेगुलेटर की एक्सपर्ट कमेटी ने भारत बायोटेक को फेज-1 क्लीनिकल ट्रायल्स की मंजूरी दे दी है।

इस वैक्सीन को इंसानों पर आजमाने की सिफारिश से वैज्ञानिक बिरादरी बेहद खुश है। डॉक्टरों का कहना है कि यह वैक्सीन शरीर में कोरोनावायरस का रास्ता ही रोक देगी। आपकी नाक में बिना सुई की छोटी सीरिंज से वैक्सीन स्प्रे की जाएगी। इसका असर दो हफ्ते में शुरू होगा और यह बच्चों को भी आसानी से दी जा सकेगी। आइए जानते हैं कि नाक से दी जाने वाली वैक्सीन होती क्या है और यह किस तरह मौजूदा वैक्सीन से ज्यादा फायदेमंद है?

क्या होती है नाक से दी जाने वाली वैक्सीन?

  • जिस तरह मांसपेशियों में इंजेक्शन से लगाई जाने वाली वैक्सीन को इंट्रामस्कुलर वैक्सीन कहते हैं, उसी तरह नाक में कुछ बूंदें डालकर दी जाने वाली वैक्सीन को इंट्रानेजल वैक्सीन कहा जाता है। यह नेजल स्प्रे की तरह है।
  • अच्छी बात यह है कि इसे इंजेक्शन से देने की जरूरत नहीं है। ओरल वैक्सीन नहीं है, इस वजह से पिलाई भी नहीं जाती। सरल शब्दों में समझें तो यह वैक्सीन उस जगह मोर्चा खोलती है, जहां से कोरोनावायरस शरीर में घुसपैठ करता है और उसे उसी जगह रोक देती है। इससे असर जल्दी होता है और प्रभावी भी।

यह नेजल वैक्सीन कैसे काम करती है और इसके क्या फायदे हैं?

  • कोरोनावायरस समेत कई माइक्रोब्स (सूक्ष्म वायरस) म्युकोसा (गीला, चिपचिपा पदार्थ जो नाक, मुंह, फेफड़ों और पाचन तंत्र में होता है) के जरिए शरीर में जाते हैं। नेजल वैक्सीन सीधे म्युकोसा में ही इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करती है।
  • सीधी बात यह है कि नेजल वैक्सीन वहां लड़ने के लिए सैनिक खड़े करती है, जहां से वायरस शरीर में घुसपैठ करता है। इस समय भारत में लग रही वैक्सीन के दो डोज 28 दिन के अंतर से दिए जा रहे हैं। असर भी दूसरे डोज के 14 दिन बाद शुरू होता है। ऐसे में नेजल वैक्सीन 14 दिन में ही असर दिखाने लगती है।
  • इफेक्टिव नेजल डोज न केवल कोरोनावायरस से बचाएगी, बल्कि बीमारी फैलने से भी रोकेगी। मरीज में माइल्ड लक्षण भी नजर नहीं आएंगे। वायरस भी शरीर के अन्य अंगों को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा। कोरोनावायरस जिस तेजी से पश्चिमी देशों में फैल रहा है, उसे रोकने में नेजल वैक्सीन का जल्दी असर दिखाना गेमचेंजर साबित हो सकता है।
  • यह सिंगल डोज वैक्सीन है, इस वजह से ट्रैकिंग आसान है। इसके साइड इफेक्ट्स भी इंट्रामस्कुलर वैक्सीन के मुकाबले कम हैं। इसका एक और बड़ा फायदा यह है कि सुई और सीरिंज का कचरा भी कम होगा।
अमेरिका में एक बच्ची को फ्लू की नेजल वैक्सीन देते डॉक्टर। फ्लू में नेजल वैक्सीन ज्यादा इफेक्टिव साबित हुई है और दुनियाभर में इसका इस्तेमाल होता है। अब कोरोनावायरस के खिलाफ भी नेजल वैक्सीन बनाई जा रही है।

भारत की जरूरतों को देखते हुए यह महत्वपूर्ण क्यों है?

  • नीति आयोग सदस्य (हेल्थ) वीके पॉल के मुताबिक, यह वैक्सीन ट्रायल्स में कारगर रही तो कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में गेम चेंजर साबित होगी। इसे इस्तेमाल करना आसान है। वहीं, एम्स-दिल्ली के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि नेजल वैक्सीन स्कूली बच्चों को भी लगाई जा सकती है। बच्चों में कोरोना के माइल्ड लक्षण मिले हैं, पर वे इंफेक्शन फैला सकते हैं। नेजल वैक्सीन बच्चों में कोरोनावायरस को रोकने में मददगार साबित होगी।
  • दोनों विशेषज्ञों की बात अपनी जगह है और आज के हालात अपनी जगह। इस समय भारत में दो वैक्सीन को मंजूरी मिली है- कोवैक्सिन और कोवीशील्ड। यह दोनों ही इंट्रामस्कुलर है। यानी हाथ पर मांसपेशियों में लगाई जाती है। साइड इफेक्ट्स के डर की वजह से लोग वैक्सीन लगाने से कतरा रहे हैं।

भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन क्या है?

  • भारत बायोटेक ने अमेरिका के वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन (WUSM) के साथ सितंबर में इस वैक्सीन के लिए करार किया था। भारत और अमेरिका में इस सिंगल डोज वैक्सीन BBV154 के प्री-क्लीनिकल ट्रायल्स हो चुके हैं। यानी लैबोरेटरी में चूहों और अन्य जानवरों पर यह बेहद सफल रहे हैं।
  • इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल्स का फेज-1 फरवरी में शुरू हो सकता है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो जून तक यह वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल्स पूरे कर लेगी। तब अगस्त तक इसके मार्केट में उपलब्ध होने की संभावना जताई जा सकती है।

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