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भाजपा का राष्ट्रवाद का नारा कितना सच कितना थोथा

 सिद्धार्थनगर ब्यूरो:- भारतीय जनता पार्टी सुशासन राष्ट्रीय एकता और संरक्षा अर्थ व्यवस्था का विकास, गरीबों किसानों और उद्योगो की वृद्धि और काले धन को खत्म कर एक स्वच्छ सरकार बनने का सपना जनता को देकर सत्ता में आयी थी, यह भी सच है कि भारत जैसे बड़े राष्ट्र जहां पर विभिन्न संस्कृतियां, पंथ और विश्वास के लोग एक साथ रहते है, 135 करोड़ की आवादी का यह राष्ट्र जहां पर आतंकवाद और विदेशियों का भारतीय भूभागों पर ही नहीं आर्थिक संसाधनों और अर्थ व्यवस्था पर कब्जा करने की शुरू से ही गिद्ध दृष्टि बनी हुई हो वहां पर नरेन्द्र मोदी जैसा परिवार की मोहमाया से रहित प्रधानमंत्री मिलना भारत के लिये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यदि मोदी के नेतृत्व में भारत विकास नहीं कर सकता और इंदिरा जी अब रही नहीं, लाल बहादुर शास्त्री जी रहे नहीं, सुभाष जी का नेतृत्व इस देश को मिला नहीं तो फिर वर्तमान विपक्षी दलों में किसी लीडर के पास मोदी को चुनौती देने के लिये या मोदी के समकक्ष अपने को खड़ा करने के लिये न तो वैचारिक सूझ-बूझ है, और न ही निष्काम कर्मयोग, किन्तु 07 वर्ष के केन्द्रीय भाजपा शासन में विभिन्न कारणों से आम जनता को भारी कठिनाइयों और विपत्तियों का सामना करना पड़ा और आज भी समाजशास्त्री, समाजसेवी और बुद्धिजीवियों द्वारा भाजपा नेतृत्व से चाहे वह योगी नेतृत्व हो या मोदी नेतृत्व केवल 02 लीडरों से अप्रत्याशित अपेक्षायें है, जिनमें एक अपेक्षा यह है कि वह राष्ट्रवाद के विचार को किस रूप में मूर्तरूप दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा तो हर सरकारे मजबूरन करेंगी, नहीं करेंगी तो गुलामी का दंश झेलेंगी और उनकी स्वयं की सरकार कठपुतली बनकर रह जायेंगी, जैसे कि पाकिस्तान की सरकार, किन्तु राष्ट्रीयता के लिये अर्थव्यवस्था के लिये नवयुवकों की ऊर्जा का सदउपयोग करना देश की तरक्की का एक प्रमुख कारक है। किन्तु अकेले उत्तर प्रदेश जैसे सूबे में 24 करोड़ की आबादी में हर जनपद में 25 से 50 हजार नवयुवक इण्टरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त कर आर्थिक मजबूरियों के चलते उच्च शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण शिक्षा एवं अर्थ व्यवस्था और कलकारखानों के लिये आवश्यक प्रशिक्षित श्रम का आधार न बनकर केवल डिग्री के लिये अपने बहुमूल्य 3 से 5 वर्ष का समय जाया करते हुए बेरोजगार बन जाया करते है, आज उत्तर प्रदेश की 50 फीसदी युवा आवादी पंजाब सूबे की तरह नशे की लत की शिकार होती जा रही है, स्कूलों और कॉलेजों और हास्टल में इसका खुलेआम सर्वेक्षण किया जा सकता है और भारतीय सुरक्षा एजेंसियां भारी मात्रा में हेरोइन, कोकीन, स्मैक, चरस, डायजीपाम, और ट्रामोजोल तथा जहर खुरानी में प्रयोग होने वाले घातक विदेशी कम्पनियों की रसायन की नित्य पकड़-धकड़ करके उसके आकड़े सरकार के समक्ष नित्यप्रति जाहिर होते रहते है, हम जापान, जर्मनी, विश्वबैंक, एशिया विकास बैंक तथा अन्य मित्र देश अमेरिका आदि से विदेशी ऋण लेकर एक ऐसा राष्ट्रीय कोष क्या तैयार नहीं कर सकते कि इन नवयुवकों को परम्परागत बैंकिंग के ऋण जाल में न फसाकर इनके परिवार की चल-अचल सम्पत्तियां जो भी हो उसे बंधक या गारण्टी में रखकर इन्हें 10 से 25 लाख तक का आसान कर्ज चाहे वह व्यवसायिक शिक्षा के लिये हो रोजगार के लिये न्यूनतम 5 वर्षीय अवधि के भुगतान पर देने का प्रयास नहीं करना चाहिये। क्या इन नवयुवकों को राज्य सरकार शिक्षा ऋण की आसान सुविधा 5 लाख और 10 लाख के बीच देकर इन्हें दो से चार वर्षीय व्यवसायिक शिक्षा हेतु स्वंतंत्र पठन-पाठन के लिये नहीं व्यवस्थित कर सकती है। 75 जिलों में जिला उद्योग केन्द्र, ग्राद्योग केन्द्र, तथा अल्य संख्यक, पिछड़ा वर्ग समाज कल्याण, विकलांग कल्याण जैसे विभागों और निगमों में प्रति वर्ष कई हजार करोड़ रूपयों का सरकार बजट और अपनी योजनायें जिले के ब्यूरो क्रेसी पर थोपती रहती है, जिनकी सफलता और कार्यक्रम लागू करने का प्रतिशत 05 प्रतिशत से भी कम है, फर्जी आंकड़े के जाल में शासन उलझ कर रह जाता है, और प्रति वर्ष उत्तर प्रदेश के पांच लाख युवा शिक्षितों का उर्जा का दोहन उनकी सेवायें, सिर्फ व्यवसायिक और तकनीकी शिक्षा न मिल पाने और उनके परिवारों द्वारा उनका इन आवश्यक स्किल्ड वर्क में प्रशिक्षित कर पाने में असमर्थता से राष्ट्र को दोहरी मार पड़ती है। अगर एक लाख यह नवयुवक कुशल श्रमिक और कारीगर के रूप में वैश्विक मांग के मुताबिक राज्य या केन्द्र द्वारा प्रशिक्षित करने के लिये आर्थिक रूप से सम्पन्न किये जाते तो आज कई लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा भारत को स्वयं सेवा और इनकी आय से देश को मिलती, सरकार दिशा विहीन पूर्ववर्ती सरकारों की तरह है, राज्य और केन्द्रीय वित्त मंत्रियों की दिशाहीनता और उनके नीति आयोग के सलाहकारो का टेबिल वर्क देश को गर्त में ले जा रहा है, ऐसा यहां के अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों और अगुओं का विचार जिसपर राष्ट्रवादी सरकारों को मनन करना चाहियें।

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