उत्तर प्रदेश
टिकैत के हुक्के में सरदारों की ही आग
किसानों के रहनुमा और उनके लिए जान निसार करने वाले चार पहर और आठों याम किसानों की चिंता में ग्रसित अकूत संपति के मालिक,उनके लिए करोड़पति शब्द का संबोधन करना शायद मुल्क के कितने कितने करोड़पतियों के साथ न्यायोचित तो नहीं होगा। कहने का आशय मात्र यह है कि किसानों के सुप्रीमो श्री श्री राकेश टिकैत जी का कद करोड़पति वाली रेखा से ऊपर है और कितना है? यह तो प्यारे सुधि पाठकों! आप स्वयं ही निर्धारित कर लेंगे की किसान शिरोमणी करोड़पति को छोड़ कर कौनसे पति है? यदपि मैने किसानों के राष्ट्रिय और अंतर राष्ट्रीय इस नेता की प्रस्तावना में शब्दो के सयम पर ध्यान देने का प्रयास किया है लेकिन फिर भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर यानी कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और नजाने कितने देशों में अपनी पहचान बनाने या फिर समर्थन प्राप्त करने वाले कदावर नेता के लिए,यदि शब्दो को न्यूनता हो तो मैं इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। वैसे भी भारत के इतिहास में,अभी तक किसी भी किसान नेता ने लाल किले पर तिरंगे से इतर कोई झंडा फहराने की हिमाकत की हो। दिल्ली के तीन बॉर्डरों पर कब्जा कर लेने के लिए और विदेश के कई मुलकों से रहनुमाई और समर्थन पा लेने के वावत, में टिकेट साहब के अदम्य में साहस को सैल्यूट करता हूं।
टिकेट जी के बाद हुक्के शब्द का निहितार्थ तलाशने के क्रम में बता दूं कि श्री राकेश जी हुक्के के विकट शौकीन है। खैर, ग्रामीण संस्कृति के धोतक* हुक्के में दिल्ली के तीनों बॉर्डर पर आग कौन कौन डाल रहा है? किसानों के सुप्रीमो के हुक्के में,अग्नि प्रजवल्लित कर रहे हैं, माननीय मुख्यमंत्री सरदार अमरिंदर सिंह जी और पंजाब के लगभग सारे देशभक्त किसान सरदार लोग। आग के लिए विदेशों से भी अरबों रूपयों की माचिस की तिल्लिया आ रही हैं। जिन्हे आप रूपयों में तब्दील करेंगे तो अरबों खरबों रुपया बैठेगा। टिकेट जी ने प्रतिज्ञा की है कि हे! लक्ष्मी मैया! आप मुझे देश से या विदेश से मिलोगी तो मैं आपका अपमान कतई नहीं करूंगा। हे मैया! मैं तेरे खातिर अपनी पगड़ी/ चोला भी बदल रहा हूं। सरदारों के समूह के बीच में ही रहता हूं।
गौरतलब है कि गाजीपुर बॉर्डर पर भी सरदार किसान लोग हरदम किसान नेता टिकैत के इर्दगिर्द रहते हैं।
सरदारों को शायद डर रहता है कि किसान सुप्रीमो कहीं पलटी न मार दें।
पलटी तो वैसे भी कोई भी मार सकता है,वैसे टिकैत जी ने अपने श्रीमुख से स्वयं कहा है कि अक्टूबर नवंबर तक का तो लक्ष्मी मैया से अनुबंध हो गया है।
क्योंकि आंदोलन तो चलेगा फिर बिना पैसे के कैसे भला कोई आंदोलन चल सकता है?
चाहे शाहीन बाग का ही क्यूं ना हो?
मसलन किसान शिरोमणि को यह भी डर २४ घंटे रहता है कि पंजाब के सिख किसान पलटी मारने के परिणामस्वरूप उनका कृपाण और कटार से साक्षात्कार ना करा दें,फिर इस साक्षात्कार के बाद बचता ही क्या शेष है?
जब बचा ही नहीं लक्ष्मी / धन किस काम आएगा?
लक्ष्मी मैया को दिया वचन/ आश्वाशन झूठा हो जायेगा।
यानी चौधरी साहब के हुक्के में पंजाब के किसानों ने ऐसी आग लगा जला रखी है कि उसके बुझने के कोई आसार नहीं हैं।
गलती से चौधरी साहब ने आग बुझाई तो वह खुद ही बुझ जायेंगे।
यदि कृपाण कटार के बीच हुक्का बुझ गया तो इसका अंजाम किसान शिरोमणि भली भांति जानते हैं।
लाल किले के दंगे के दरम्यान गैर तिरंगे का ध्वजारोहण प्रमाणित कर चुका है कि तथाकथित किसान आंदोलन की आड़ में देश विदेश से खलिस्तानियो और पंजाब के किसानों का यानी कैप्टेन साहब या बादल साहब के दोनो हाथो में लड्डू हैं।
टिकैत साहब के सौजन्य से देश की राजधानी में, क ख ग के नींव तो रखी जा चुकी है।
क का अर्थ किसान ख का अर्थ खालिस्तान
ग का अर्थ गैर केंद्र शासित राजनीतिक जमात ।
यह कहावत सत्य चरित्रार्थ होती है कि जब लक्ष्मी आती है तो छप्पर फाड़ कर आती है। टिकेट साहब को दौलत और शौहरत सब तरफ से मिल रही है। गैर भाजपा नीति सियासी पार्टियां दिल्ली के बॉर्डर पर मौजूद वफादार किसानों को वाईफाई,खाना पीना नाश्ता और एसी युक्त विलास्ता पूर्ण सुविधाएं मयस्सर करा रही हैं। यदि कोई सुधि पाठक के पास बेरोजगारी जैसी वैचारगी है तो बेशक दिल्ली के बोर्डेरो पर किसान आंदोलन में शिरकत कर सकता है। रबड़ी, रसगुल्ले,कपड़ा लत्ता प्राय: हर
चीज निशुल्क उपलब्ध है।बस हमारे नेता टिकेट अमर रहे या
वाहे! गुरु! बोलना काफी है।बहुत से बेरोजगारों का इस ऐतिहासिक
किसान आंदोलन अथवा अलग
देश की मांग में, नाम स्वर्ण अक्षरों
में लिखा जा रहा है।आपको भी विदित होगा की इससे पहले
शाहीन बाग आंदोलन में भी कितने देश प्रेमियों ने बलिदान किया है।फर्क बस इतना है को वहां इन्सा अल्लाह…. यहां वाहे गुरु!……… अकूत संपति के मालिक किसान नेता टिकेट जी के योगदान को इतिहास कभी भुला नहीं पाएगा। टिकेट साहब के हुक्के में कैप्टन/ सरदार ही नहीं बल्कि सरदारों की आग है। भई! सरदार तो सरदार होता है। फिर सारे देश के सारे किसान सरदारों का इस मामले में एक ही मतव्य है।इस आंदोलन की आड़ में आगामी पंजाब के चुनाव तात्कालिक मुद्दा है, असली मकसद तो भविष्य में हिंदुस्तान में असली ध्वजा रोहण् करना है। चौधरी साहब का लक्ष्मी मैया से किया गया अनुबंध और कृपाण कटार के बीच देश से खुद्दारी या फिर गद्दारी करना है?आग से खेलना या फिर अपने हुक्के में आग रखवाना काम तो दोनो ही कठिन है। किसान नेता की जय।