राजस्थान
आत्महत्या
बेटे की चाह में राजू की सात बड़ी बहिनों ने भी धरती पर आने का सौभाग्य प्राप्त किया। पिता का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था फिर भी माँ ने अपने इकलौता बेटे और सात बेटियाँ का पालन पोषण करने में हर सम्भव कार्य किया। कर्ज़ की मार पिता को मार गई। अकेली माँ ने एक योद्धा की भाँति बिना हारे बच्चों का भरण पोषण किया। बेटियाँ बड़ी होने को आई थी जो माँ के लिए घोर चिंता का विषय था क्योंकि इतने ग़रीब परिवार में कौन सा रिश्ता आएगा। और उपर से दहेज़ की मार से कैसे बचा जा सकता था उसी के साथ एक त्याग प्रथा भी थी जो उनको शोषण की चरम सीमा तक पहुँचा देती। आयु सीमा के अनुसार बेटियाँ भी माँ का दुख समझने लगी थी। एक रात दो बड़ी बहिनें खेत में एक फांसी के फंदे से लटक गई। दुखों के आवरण में इस घटना ने भी पहाड़ का निर्माण किया। समय बीतता गया माँ अब भी एक योद्धा की भाँति मजबूरियों के मैदान में अपने बच्चों के लिए कार्य कर रही थी।
आसमान ओढ़कर पढ़ाई करने के बावजूद अपनी प्रतिभा के दम पर राजू ने दसवीं कक्षा में पहला स्थान हासिल किया, अब वह बड़े सपने लेकर आगे की पढ़ाई के लिए बहुत उत्साहित था।
लेकिन जिंदगी की मैराथन में दौड़ रही माँ अब ज्यादा नहीं दौड़ पाई। आज एक योद्धा राज्य को विरान कर गया। आज उन छोटी-छोटी बेटियाँ की चोटियां चली गई।
कुछ समय के बाद घर में त्रिकाल की स्थिति पैदा हो गई। माँ के चले जाने के बाद सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया। घर में कोई भी कमाने वाला नहीं था।
अब मजबूरी ही थी जिनसे राजू को अपने गाँव से मीलों दूर भेज दिया, चकाचौंध की दुनियाँ में जहाँ दूर-दूर उसका अपना कोई नहीं था
अकेली बहिनों को छोड़ कर जाना उचित नहीं था लेकिन मजबूरन जाना पड़ा।
काम मिलने की चाह में राजू शहर में दो दिन से भूखा ही भटकता रहा, उसकी मज़बूरी लोगों को समझ नहीं आई। उधर घर में खाने को लाले पड़ रहे थे फिर भी पांच बहिनों ने मिलकर कुछ समय तक जीवन चलाया। समाज के कुछ असभ्य लोगों की द्रष्टि राजू के घर पर पड़ गई। बेटियाँ को अब तंग किए जाने लगा। इधर राजू दो जून की रोटी के लिए तरस खाता हुआ भटक रहा था। फिर एक रात असभ्य लोगों से और भूख से पीड़ित पाँच बहिनों ने वही बात दोहराई जो कुछ वर्ष पहले दो बड़ी बहिनों ने सीख दी थी।
उस रात के बाद राजू के घर में पूर्णतः शांति छा गई। काम न मिलने पर इधर-उधर भटकता हुआ राजू वापस अपने घर आता है और
वही रात दोहराता है।