बंगाल चुनाव में नंदीग्राम की अहमियत क्या है?नंदीग्राम से चुनाव क्यों लड़ रही हैं ममता?
विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में सियासी उठापटक जारी है। एक के बाद एक विधायक और मंत्री TMC छोड़कर जा रहे हैं। पिछले साल 19 दिसंबर को ममता के करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी भाजपा में शामिल हुए थे। उनके साथ सांसद सुनील मंडल, पूर्व सांसद दशरथ तिर्की और 10 विधायकों ने भाजपा ज्वॉइन की थी। इनमें 5 विधायक TMC के थे। अब तक दो महीने के भीतर 11 TMC नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है।
TMC नेताओं को तोड़ने में शुभेंदु अधिकारी की भूमिका अहम मानी जा रही है। ये बात ममता बनर्जी भी जानती हैं। यही वजह है कि कुछ दिन पहले उन्होंने शुभेंदु के खिलाफ नंदीग्राम से खुद चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया। वही नंदीग्राम जिसको मुद्दा बनाकर ममता ने एक दशक पहले वाममोर्चा का किला ध्वस्त किया था।
ममता के इस फैसले के बाद आने वाले विधानसभा चुनाव में किसे फायदा होगा? नंदीग्राम की अहमियत क्या है? क्या ममता के इस फैसले से भाजपा बैकफुट पर है? क्या ये ममता का मास्टर स्ट्रोक है? या एक सोची समझी रणनीति के तहत ममता नंदीग्राम आ रही हैं ताकि मोदी वर्सेज ममता की जगह पूरा इलेक्शन ममता वर्सेज शुभेंदु हो जाए। आइए जानते हैं…
बंगाल चुनाव में नंदीग्राम की अहमियत क्या है?
नंदीग्राम बंगाल की राजनीति में बदलाव का प्रतीक है। इसका इतिहास क्रांतिकारियों से जुड़ा है। आधुनिक भारत का यही एकमात्र इलाका है, जिसे दो बार आजादी मिली है। 1947 से पहले, यहां के लोगों ने इस इलाके को अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए मुक्त करा लिया था। बदलाव का प्रतीक इसलिए क्योंकि एक दशक पहले ममता बनर्जी नंदीग्राम के बल पर ही सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थीं। 2006-07 में बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में इंडोनेशिया के सलीम ग्रुप को केमिकल हब बनाने के लिए 10 हजार एकड़ जमीन देने का ऐलान कर दिया। इस फैसले का जमकर विरोध हुआ। स्थानीय लोग अपनी जमीनें छोड़ने को तैयार नहीं थे।
लेकिन, बुद्धदेव अड़े रहे और अंततः बल प्रयोग से जमीन अधिग्रहण करने का आदेश दे दिया। इसके बाद शुभेंदु अधिकारी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर आंदोलन शुरू कर दिया। 14 मार्च 2007 को पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें 14 लोगों की जान चली गईं। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाली ममता बनर्जी ने मुद्दे को लपक लिया और खुद पुलिस बैरिकेडिंग को पार करती हुईं नंदीग्राम पहुंच गईं। वहां उन्होंने मां, माटी और मानुष का नारा दिया। ये नारा खूब चला। लाल झंडे के साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाले लोग भी इस नारे के साथ खड़े हो गए।
क्या ये ममता का मास्टर स्ट्रोक है ?
नंदीग्राम से चुनाव लड़ना मास्टर स्ट्रोक है या नहीं, ये तो वक्त ही तय करेगा, लेकिन इतना साफ है कि यह ममता की सोची समझी रणनीति है। वरिष्ठ पत्रकार शुभाशीष मोइत्रा कहते हैं, ‘अब तक बंगाल की राजनीति में मोदी वर्सेज ममता टॉप पर था, लेकिन अब सियासी लड़ाई ममता वर्सेज शुभेंदु की तरफ शिफ्ट हो गई है। हो सकता है ये बहुत दिनों तक न रहे, लेकिन जब तक है तब तक निश्चित रूप से ममता के लिए लीडिंग एज है। ममता खुद भी चाहती थीं कि ऐसा हो ताकि वो स्थानीय लोगों का सपोर्ट हासिल कर सकें। वो अपने मां, माटी और मानुष के नारे को खाद-पानी दे सकें।’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शिखा मुखर्जी कहती हैं कि निश्चित रूप से ममता बनर्जी का ये मास्टर स्ट्रोक है। BJP के पास बंगाल में अपना कोई मजबूत चेहरा नहीं है। वो शुभेंदु के सहारे इलेक्शन कैंपेन में ताकत झोंकना चाहती थी। वहीं TMC की कोशिश थी कि शुभेंदु को नंदीग्राम में रोक लिया जाए। इसमें वो बहुत हद तक कामयाब भी दिख रही हैं। ममता के इस फैसले के बाद भाजपा को नंदीग्राम में काफी मेहनत करनी पड़ेगी। शुभेंदु के साथ उसके टॉप लीडर्स को पूरे दमखम के साथ यहां उतरना पड़ेगा। इसका फायदा ममता को मिलेगा, क्योंकि दूसरे इलाकों में भाजपा और शुभेंदु मजबूती से प्रचार नहीं कर सकेंगे।
नंदीग्राम से चुनाव क्यों लड़ रही हैं ममता?
ममता बनर्जी चाहती हैं कि इस बार के चुनाव में नंदीग्राम फिर से केंद्र में रहे। शुभेंदु के गढ़ में उनके खिलाफ उतर कर ममता ये मैसेज भी देना चाहती हैं कि वे किसी दबाव में नहीं हैं। इसके साथ ही एक बड़ी वजह यह भी है कि इस वक्त देशभर में किसान आंदोलन का मुद्दा गरमाया हुआ है। ऐसे में खुद को किसानों और मजदूरों का हितैषी साबित करने के लिए नंदीग्राम से बेहतर जमीन ममता को नहीं मिलेगी।
ये इलाका मुस्लिम बहुल रहा है। नंदीग्राम में 30% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। वहीं पूर्व मेदिनीपुर में 14% से ज्यादा मुसलमान हैं। पिछले तीन चुनावों को हम देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे। 2011 में भी यहां मुस्लिम प्रत्याशी ही जीता था और सबसे बड़ी बात कि जीत-हार का अंतर 26% था। वहीं 2016 में यहां शुभेंदु जीते थे, लेकिन अंतर महज 7% ही था। सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि शुभेंदु के अलग होने के बाद TMC यहां से किसी मुस्लिम उम्मीदवार को ही मैदान में उतारती। वैसी स्थिति में BJP नंदीग्राम और यहां के बाकी इलाकों में धुव्रीकरण की कोशिश करती, लेकिन ममता बनर्जी ने खुद मैदान में उतरने का ऐलान कर भाजपा को झटका दिया है।
शुभेंदु का कितना फायदा भाजपा को होगा?
पूर्व मेदिनीपुर में शुभेंदु और उनके परिवार का दबदबा रहा है। उनके पिता शिशिर अधिकारी और भाई दिवेंदु अधिकारी यहां से सांसद हैं। शुभाशीष मोइत्रा कहते हैं कि शुभेंदु बड़े नेता हैं, ये इलाका उनका गढ़ जरूर रहा है, लेकिन तब जब वो TMC में थे। अब वो भाजपा में हैं, उनके पाला बदलने से लोग भी पाला बदलेंगे और किस स्तर पर बदलेंगे, ये कहना मुश्किल है। वैसे भी ममता के सामने शुभेंदु का पॉलिटिकल स्टेटस कमजोर है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
शिखा मुखर्जी कहती हैं कि शुभेंदु की वजह से भाजपा के अंदर नाराजगी भी है। जो कार्यकर्ता और नेता दशकों तक शुभेंदु के खिलाफ लड़ते रहे, उन्हें अब शुभेंदु के नेतृत्व में काम करना पड़ रहा है। इसके साथ ही जो लोग शुभेंदु की वजह से TMC छोड़कर भाजपा में आए थे, वो वापस ममता की पार्टी में जा रहे हैं, क्योंकि वे शुभेंदु के साथ नहीं रहना चाहते हैं। ऐसे में भाजपा को दोनों तरफ से नुकसान हो रहा है।
क्या ममता दोनों सीटों से चुनाव लड़ेंगी?
अब तक ममता दक्षिणी कोलकाता के भवानीपुर से चुनाव लड़ती रही हैं। वो 2011 से ही यहां जीतती रही हैं। इस बार वो यहां चुनाव लड़ेंगी या नहीं, इसको लेकर शुभाशीष कहते हैं कि ममता बनर्जी को इस सीट से भी चुनाव लड़ना चाहिए। ऐसी कोई वजह नहीं दिखती जिससे कि वे यहां से न लड़ें।
हालांकि आंकड़े ये भी बताते हैं कि इस इलाके में ममता का प्रभाव घट रहा है और भाजपा का बढ़ रहा है। भवानीपुर गैर-बंगाली हिंदुओं की बहुलता वाला इलाका है। कोलकाता में हिंदी भाषियों की तादाद राज्य में सबसे ज्यादा है जिनके वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश भाजपा करती रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई बड़े नेता भवानीपुर में रैली और रोड शो कर चुके हैं। 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां करीब 3% वोट हासिल हुआ था, लेकिन 2016 में ये आंकड़ा बढ़कर 19% जा पहुंचा।
क्या शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगे?
शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम से विधायक हैं। पूर्व मेदिनीपुर उनका अपना गढ़ रहा है। वे ममता बनर्जी को यहां से हराने का ऐलान कर चुके हैं। हालांकि शुभाशीष मोइत्रा कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि वे यहां से चुनाव लड़ेंगे। और रणनीतिक तौर पर उनको लड़ना भी नहीं चाहिए। क्योंकि इस सीट पर ममता को हराना मुश्किल काम है। शुभाशीष ये भी कहते हैं कि अगर शुभेंदु यहां से चुनाव लड़ते हैं और जीत दर्ज करते हैं तो वे बंगाल के मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं।