राज्य
क्या सुशांत सिंह राजपूत तनाव – में ही थे या हत्या
क्या सुशांत सिंह राजपूत त्रासदी – कोविड -19 के समय की व्यापक मानसिक स्वास्थ्य चुनौती का संकेतक है ? |
हमारे शरीर को कोविड -19 से बचाने के लिए दुनिया भर की सरकारें और संस्थाएं हर संभव प्रयास कर रही हैं.यह सर्वविदित है कि कोविड -19 वायरस फेफड़ों को सबसे ज्यादा हानि पहुँचाता है, साथ में इस बीमारी से शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों और शारीरिक प्रणालियों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचता है. लेकिन शारीरिक खतरे से परे, अकेलेपन से जो मानसिक अस्वस्थता उपज़ती है ,वो भी किसी ख़तरनाक जानलेवा बीमारी से कम नहीं है. इसलिए,यह जानते हुए भी युवा और नामी कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की चौंकाने वाली आत्महत्या पूरी तरह से एक व्यक्तिगत कृत्य है, पर इस महामारी के समय में तनावग्रस्त रहना मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती को आसानी से बयां करता है.
आम मानसिकता यह होती है कि जब ऐसी दुःखद त्रासदी लोगों को पता चलती है तो वो इस तरह की घटना से गुजरने वाले व्यक्ति के पिछली बातों से उस व्यक्ति के मन की बातें जानने की कोशिश करतें हैं . ऐसी कोशिश करें तो हम पातें हैं कि इस मामले में एक अभिनेता होने के नाते, सुशांत सिंह ने जो किरदार निभाए हैं वह भी उनके लिए बोलते हैं. पिछले साल रिलीज हुई फिल्म छिछोरे में सुशांत ने कहा था – सक्सेस के प्लान में सबके पास है लेकिन गलती से अगर फेल हो गए तो उस फैलियर से कैसे डील करना है – कोई भी इस बारे में बात नहीं करता है और इसी वजह से असफलता को झेलना इतना मुश्किल होता है.
महामारी से हमारी चिंताएं बढ़ती हैं और अकेलापन हमें तनाव की तरफ ढकेलता जाता हैं. हमें न सिर्फ अपनी और अपने प्रियजनों की चिंता सताती है बल्कि अपने करियर को लेकर भी नकारात्मक ख्याल आने लगता है. सुविधा संपन्न लोगों के पास गरीबों की तुलना में अधिक विकल्प होते हैं लेकिन सुविधा का होना उनके अंदर के भय को भगाने में ज्यादा कामयाब नहीं हो पाता.
भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं कोविड -19 महामारी से पहले से ही अपर्याप्त थीं, जिनमें करीब 4,000 मनोचिकित्सकों को करीब एक अरब से अधिक लोगों की मदद करनी होती थी और उन्हें ऐसा करना होता था कि किसी भी तरह मरीज़ों की जरूरतों को पूरा कर दिया जाय. हमारे मानसिक स्वास्थ्य के खातिर हमें जिन उपकरणों से दूर रखना चाहिए, उन्हीं उपकरणों की मदद से हम कॉल करतें है ताकि किसी तरह हम अपने मददगार से जुड़ सकें .हमें यह जानने की आवश्यकता है कि इस समस्या से जूझने वाले हम अकेले नहीं है और ना ही हमारी बीमारी दुनियां में होनेवाली किसीकी पहली बीमारी है. इस मामले में मानसिक अस्वस्थता को सभी को सामान्य रूप से लेने की आवश्कता है | एकदूसरे के प्रति थोड़ा सा ध्यान और सतर्क रहने की जरुरत है . पिछले महीने के मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह का विषय भी दयालुता था। किसी का भी आपको थोड़ी सी मदद करना वास्तव में मरीज को थोड़ा सा पहले से ठीक कर देता है।
आम मानसिकता यह होती है कि जब ऐसी दुःखद त्रासदी लोगों को पता चलती है तो वो इस तरह की घटना से गुजरने वाले व्यक्ति के पिछली बातों से उस व्यक्ति के मन की बातें जानने की कोशिश करतें हैं . ऐसी कोशिश करें तो हम पातें हैं कि इस मामले में एक अभिनेता होने के नाते, सुशांत सिंह ने जो किरदार निभाए हैं वह भी उनके लिए बोलते हैं. पिछले साल रिलीज हुई फिल्म छिछोरे में सुशांत ने कहा था – सक्सेस के प्लान में सबके पास है लेकिन गलती से अगर फेल हो गए तो उस फैलियर से कैसे डील करना है – कोई भी इस बारे में बात नहीं करता है और इसी वजह से असफलता को झेलना इतना मुश्किल होता है.
महामारी से हमारी चिंताएं बढ़ती हैं और अकेलापन हमें तनाव की तरफ ढकेलता जाता हैं. हमें न सिर्फ अपनी और अपने प्रियजनों की चिंता सताती है बल्कि अपने करियर को लेकर भी नकारात्मक ख्याल आने लगता है. सुविधा संपन्न लोगों के पास गरीबों की तुलना में अधिक विकल्प होते हैं लेकिन सुविधा का होना उनके अंदर के भय को भगाने में ज्यादा कामयाब नहीं हो पाता.
भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं कोविड -19 महामारी से पहले से ही अपर्याप्त थीं, जिनमें करीब 4,000 मनोचिकित्सकों को करीब एक अरब से अधिक लोगों की मदद करनी होती थी और उन्हें ऐसा करना होता था कि किसी भी तरह मरीज़ों की जरूरतों को पूरा कर दिया जाय. हमारे मानसिक स्वास्थ्य के खातिर हमें जिन उपकरणों से दूर रखना चाहिए, उन्हीं उपकरणों की मदद से हम कॉल करतें है ताकि किसी तरह हम अपने मददगार से जुड़ सकें .हमें यह जानने की आवश्यकता है कि इस समस्या से जूझने वाले हम अकेले नहीं है और ना ही हमारी बीमारी दुनियां में होनेवाली किसीकी पहली बीमारी है. इस मामले में मानसिक अस्वस्थता को सभी को सामान्य रूप से लेने की आवश्कता है | एकदूसरे के प्रति थोड़ा सा ध्यान और सतर्क रहने की जरुरत है . पिछले महीने के मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह का विषय भी दयालुता था। किसी का भी आपको थोड़ी सी मदद करना वास्तव में मरीज को थोड़ा सा पहले से ठीक कर देता है।
अमृता श्रीवास्तव ,
बैंगलोर