विहिप ने तिरुपति भोग प्रसाद में अपवित्रता का किया विरोध
सरकार द्वारा अधिग्रहित मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के संदर्भ में दिया ज्ञापन
पब्लिक की लहर। मीरजापुर।विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल मीरजापुर ने शुक्रवार को जिला मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन कर तिरुपति भोग प्रसाद में अपवित्रता का विरोध करते हुए राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को दिया।ज्ञापन में कहा है कि हमारे पवित्रतम तीर्थों में एक भगवान श्री वेंकटेश्वर के भोग प्रसाद में अखाद्य अपवित्र वस्तुओं की मिलावट का समाचार मिला है, जिससे प्रत्येक हिंदू जनमानस का मन इस कुकृत्य से व्यथित है सभी मे रोष व्याप्त है। तिरुपति बालाजी मंदिर में वितरित होने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिंदुओं की बहुत श्रद्धा होती है। दुर्भाग्य से इस महाप्रसाद को बनाने। वाले घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक समाचार आ रहे हैं। पूरे देश का हिंदू समाज आक्रोशित है और हिंदुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है। इस पवित्र तीर्थ का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड के द्वारा होता है। वहां केवल महाप्रसाद बनाने के मामले में ही हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया। अपितु हिंदुओं के द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं। कई बार तो हिंदुओं के धर्म पर आघात कर हिंदुओं का धर्मांतरण करने वाली संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। कई अन्य राज्य सरकारें भी मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर हिंदू और हिंदू विरोधी कार्यो में करती रही है। हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई बार-बार दी जाती है परंतु दुर्भाग्य से हिंदुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिंदुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं। जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही है। अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर वे संविधान की धारा 12, 25 व 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही हैं। क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिंदुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है परंतु हिंदू को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्वविदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था। अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित करके उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी। स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी भारत की सरकारें इस औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है और हिंदुओं के मंदिरों पर नियंत्रण स्थापित कर लूट रही है। तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिंदू समाज का यह विश्वास हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता। यह स्थापित मान्यता है कि हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। वास्तविकता यह है कि मंदिरों की आय व संपत्ति की खुली लूट अधिकारियों व राजनेताओं के द्वारा तो की ही जाती हैं कई बार उनके चहेते हिंदू विरोधियों द्वारा भी की जाती है। ज्ञापन में राज्य सरकार को उनके द्वारा नियंत्रित सभी हिंदू मंदिर अविलंब मुक्त करके हिंदू संतो व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गत सौंपने के लिए प्रेरित करने को कहा। इस व्यवस्था का प्रारूप पूज्य संतों ने कई वर्षों के चिंतन मनन व चर्चा के बाद निर्धारित किया है। इस प्रारूप का सफलतापूर्वक उपयोग कई जगह किया जा रहा है। आशा है आप अपने प्रभाव का उपयोग कर अपनी सरकार को वांछित दिशा में शीघ्र निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें विश्वास है कि परस्पर विमर्श से ही हमारे मंदिर हमको वापस मिल जाएंगे और हमें व्यापक आंदोलन के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। इस दौरान प्रान्त सह मंत्री सत्यप्रकाश, प्रान्त सह सत्संग प्रमुख महेश तिवारी, विभाग संगठन मंत्री अमित, विभाग मंत्री रामचन्द्र शुक्ल, विभाग संयोजक प्रवीण, जिलाध्यक्ष मीरजापुर माता सहाय, जिलाध्यक्ष चुनार दिनेश प्रकाश, जिला मंत्री कृष्ण, जिला सह मंत्री अभय मिश्रा व विनय, शशिकान्त, डा. संतोष दूबे, अरविंद सारस्वत, राज माहेश्वरी, राहुल जैन, कुँवर साहब, बृजेश गुप्ता, लक्ष्मीकान्त पाण्डेय, अशोक, पवन, सुब्रतो, विजय मिश्र, गणेश उपाध्याय के साथ तमाम कार्यकर्ता एवं भारी संख्या मे लोग उपस्थित रहे।