भारत के दो औपचारिक नाम भी भारत की समरूपता को बाधित कर रहे हैं शंकराचार्य

संतोष चौरसिया वाराणसी//प्रयागराज महाकुंभ में परम धर्म संसद् का जयोद्घोष से शुभारम्भ हुआ। परम धर्म संसद में परम धर्मादेश जारी करते हुए
परमाराध्य ज्योतिष पीठाधीश्वर शङ्कराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि एक देश की अवधारणा न केवल एक राजनीतिक दल के शासन के लिए लाई गयी थी, अपितु अशेष देश में एक जैसी संस्कृति, सभ्यता, रोजगार के अवसर और नागरिकों में एकात्मबोध के विकास के लिए भी लाई गयी थी। आदि शङ्कराचार्य जैसे आध्यात्मिक आचार्यों ने जब देश की चार दिशाओं में चार पीठ बनाए और चार धामों का उद्धार कर दक्षिण का पुजारी उत्तर में और उत्तर का पुजारी दक्षिण में नियुक्त किया तो प्रयास यही था कि भारत अखण्ड और समरूप रहे। परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज ने परम धर्म संसद् में परम धर्मादेश जारी करते हुए कहा कि गोमाता के सन्दर्भ में विगत दिनों परमाराध्य की देश के हर प्रदेश में हुई “गोप्रतिष्ठा ध्वज स्थापना भारत यात्रा “ से पता चला कि गाय के बारे में पूरा देश समरूप नहीं है। भाषा, भूषा, भाव और भूमिकाओं के बारे में भी यही स्थिति है। जनांकिकी कानून की कुछ ३७०, ३७१ जैसी धाराएँ आर्थिक वैषम्य भारत की समरूपता को बाधित कर रहे हैं।
शंकराचार्य महाराज ने आगे कहा कि भारत के दो औपचारिक नाम भी भारत की समरूपता को बाधित कर रहे हैं।
अतः परम धर्मादेश द्वारा हम अपने देश को एक नाम भारत से ही पहचानने का परम धर्मादेश जारी करते हैं और यह भी कहना चाहते है कि भारत राजनैतिक रूप से भी अखण्ड हो उसके भी प्रयास हों, पर उस अखण्ड भारत; जिसका आकार नक्शें में गौमाता की आकृति का बोध कराता था को सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अखण्ड बनाये रखने का प्रयास अनवरत रखेंगे।आज सदन में कुम्भ क्षेत्र में हुई भगदड़ की घटना से क्षुब्ध होकर परम धर्म संसद् ने मृतकों के लिए शोक प्रस्ताव पारित किया। शान्ति वाचन करके सबके सद्गति की कामना की गयी।
ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वर जी महाराज के नैष्ठिक ब्रह्मचारी शिष्य ब्रह्मचारी कैवल्यानन्द जी के मौनी अमावस्या पर्व पर हृदयगति रुकने से अचानक काल कवलित होने पर उनके लिए भी सद्गति की कामना कीया गया। परम धर्म संसद् का सञ्चालन प्रकर धर्माधीश किशोर रूप में देवेन्द्र पाण्डेय ने किया। विषय स्थापना राजा सक्षम सिंह योगी ने किया।