रांची का लाल कर रहा कमाल
रांची के संत जेवियर कॉलेज के 19 वर्षीय छात्र विकास चौरसिया पेंटिंग जगत में अच्छा खासा पहचान बनाता जा रहा है। इतनी कम उम्र में राष्ट्रीय स्तर से ऊपर उठकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसका पहचान बनाना और अपना नाम रौशन करना उसके काबिलियत का निशानी है। दरअसल हर व्यक्ति की सफलता में एक ऐसा वक्त या मोड़ भी आता है जब उसकी दुनिया अंधेरों से घिरी नजर आती है। वह विषम परिस्थितियो से निकालने के लिए हाथ – पांव मारता है और इस बीच ऐसा रास्ता भी निकल आता है। वह रास्ता ऐसा ही है जैसे किसी प्यासे को मरुस्थल में शीतल झरना मिल गया हो, जहां शीतलता की मधुरस उसे प्यास बुझाने के लिए मिल गया हो।
2019 से कोरोना संक्रमण का काल चल रहा है। इस कोरोना काल में बहुत से लोग अर्श से फर्श पर लुढ़क गए हैं। कोरोना के शुरुआत के साथ ही विकास चौरसिया के परिवार पर मानो मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा, कारण उनके पिता की बिजनस बुरी तरह पीट गई। इससे घर की स्थित जर्जर हो गई। ऐसे में विकास चौरसिया ने अपने हुनर का बखूबी इस्तेमाल किया। उसने घर की माली हालत को ठीक किया।
चूंकि शुरू से ही विकास के दिलोदिमाग पर पेंटिंग की दुनिया में कुछ अच्छा करने की ललक थी। उसने फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का एक शानदार स्केच बनाया और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। उसके बाद जो कुछ हुआ उससे विकास चौरसिया की किस्मत चमक उठी। उधर, देश की मीडिया सुशांत मर्डर केस की परतें उधेड़ने में लगे थे, तो इधर विकास की पेंटिंग धूम मचा दी। फिर विकास के पास वॉल पेंटिंग और अन्य पेंटिंगों को बनवाने के लिए ऑर्डर दर ऑर्डर मिलने लगे। इससे अच्छी आमदनी का रास्ता खुल गया।
आप यह जानकार हैरत होगी कि विकास चौरसिया ने प्रतिदिन 80 किलोमीटर साईकिल चलाकर अपने कार्यों को फलीभूत किया।
उसे इस पेंटिंग की सफलता पर स्टेट, नेशनल व इंटरनेशनल स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उसपर बचपन काल से ही पेंटिंग बनाने की हॉबी है। वह वॉल पेंटिंग, ट्राइबल पेंटिंग, मॉडर्न पेंटिंग, वॉल ग्राफिटी आदि बड़ी खूबसूरती से बना लेता है। उसकी पेंटिंग नेपाल एक्सजीविशन में भी लगा था। उसे पेंटिंग के साथ फैशन- शो का शौक है। वह अपने आप को आधुनिक चित्रकार के रूप में देखता है। वह 120 से ज्यादा पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग ले चुका है। उसका कहना है कि किसी भी सफलता के लिए शॉटकट रास्ता अपनाने से बचना चाहिए। खुद पर भरोसा रखकर ही सफलता हासिल की जा सकती है।
निश्चय ही चौरसिया समाज के सभी बच्चों को सफलता के लिए एक निश्चित लक्ष्य का संधान करना चाहिए। यह सच है कि एकलव्य को किसी गुरु का आशीर्वाद प्राप्त नहीं था। लेकिन उससे मिट्टी के गुरु का निर्माण किया और अभ्यास किया। जिसका प्रतिफल यह रहा कि द्रोणाचार्य जैसे गुरु भी उसके धनुर्विद्या को देखकर अचंभित रह गए। बाद में जो कुछ हुआ, वह आप जानते ही हैं।
तो किसी भी सफलता के लिए एक निश्चित लक्ष्य का साधक बनना पड़ता है। चौरसिया समाज के बच्चे आगे बढ़ते रहें, हमारी अंतर्मन से कामना है।
* सुरेश चौरसिया